भोर Vimal Kant Pandey
भोर
Vimal Kant Pandeyछा रही गगन
में कैसी लालिमा?
शनैः शनैः छट रही कालिमा
मंद मंद बह रही
शीतल हवा गरमाई
फूलों पे पड़ी
ओस भी मुस्काई
पंछी चहचहा रहे
गीत खुशि के गा रहे
हर ओर मस्ती है छाई
ये किसके आने की
आहट है आयी?
कलियों ने भी
पंखुड़ियां खोली
है कौन जिसने
बादलों संग खेली होली ?
नव किरणों के रथ
पे हो के सवार
आ रहा कौन पर्वतों के पार?
आने से जिसके छाई
है बहार |