है रात से मेरा प्रेम पुराना  Prashant Kumar Dwivedi

है रात से मेरा प्रेम पुराना

Prashant Kumar Dwivedi

है रात से मेरा प्रेम पुराना।
ये तन्हाई और दिल दीवाना।
जब उजालों के सारे निशान धुंधले से हो जाते हैं।
जब दिन के सारे छल-प्रपंच अंधियारे में खो जाते हैं।
जब नींद की रानी से रूठी ये आँखे शिकवा करती हैं,
और दोहरेपन की थकन से बेबस सारे रिश्ते सो जाते हैं।
तब जग जाता है आँखों में वही पुराना अफसाना।
रात से मेरा प्रेम पुराना।
ये तन्हाई और दिल दीवाना।
मन ही मन उसका आँचल तारों से सजाया करता हूँ।
और उसी रूप के साँचे में मैं चाँद बिठाया करता हूँ।
इस तरह वो मेरी रूह की खुशबू बनकर पास में होती है,
और मैं उसके हाथों को थामे गीत सुनाया करता हूँ।
तभी आँख के बेबस आँसू झूठ नहीं सुन पाते हैं,
मैं खड़ा देखता रहता हूँ उनका आँखों से बह जाना।
है रात से मेरा प्रेम पुराना।
ये तन्हाई और दिल दीवाना।

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