ऐसा उसके हाथों को छूकर लगता है!  Prashant Kumar Dwivedi

ऐसा उसके हाथों को छूकर लगता है!

Prashant Kumar Dwivedi

जितना ही वो किस्मत के बाहर लगता है।
उतना ही वो सांसों के अंदर लगता है।

बिखरे लट और कोई श्रृंगार नहीं,
फिर भी वो मुझको कितना सुन्दर लगता है।

खनकती उसकी अनगढ़ बातों का संगीत,
मुझे दीवानी मीरा का स्वर लगता है।

इतनी कोमल जैसे ओस की बूँद कोई,
छूने से ना ढल जाये डर लगता है।

उजले पर्वत से जैसे चाँद लटकता हो,
ऐसा उसके माथे पर झूमर लगता है।

छुई मैंने उजली चांदनियाँ मानो,
ऐसा उसके हाथो को छूकर लगता है।

वो बेरुख आँखे और वो गालों की सुर्खी, 
रूठे में वो और मुझे बेहतर लगता है।

जी ली हों अनगिनत ज़िंदगियाँ मैंने,
ऐसा उसके संग इक पल रहकर लगता है।

मर ही जाता ये अहसास जो कर लेता, 
कैसा उसको बाँहों में भरकर लगता है।

ज़रूर उसने हाथ इसमें धोये है, 
मीठा मुझको जाने क्यों सागर लगता है।

उसने भी थोड़ा तो मुझको चाहा है,
कभी-कभी ही सही मगर लगता है।

उससे दूर होने में ऐसा लगता है, 
जैसा आँख से आँसू को बहकर लगता है।

वो मासूम; तारीफ को रुस्वाई न समझ बैठे,
गलती कर दी मैंने ये सब कहकर लगता है।

जब किस्मत मेरी चाहत पर हंस देती है, 
बस तभी मुझे भगवान मेरा पत्थर लगता है।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1620
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com