कोई होगा उस पार Vivek Tariyal
कोई होगा उस पार
Vivek Tariyalजीवन के बाहव में हम उस नौका पे सवार हैं
जिसमें बोझ जीवन के लदे और मुश्किलें हज़ार हैं
खुद ही माझी बन, चलाते अपनी पतवार
क्या कोई होगा उस पार? क्या कोई होगा उस पार?
मन की व्यथा किससे कहें, यह वेदना कैसे सहें
मन में उमड़ती भावनाएँ, व्यक्त हम किससे करें
जीवन रुपी इस नदी में, जो न छोड़े मंझधार
क्या कोई होगा उस पार? क्या कोई होगा उस पार?
लोगों के बीच रहकर भी, हम अकेले हैं
हर मुश्किलों को पार कर, तूफ़ान झेले हैं
किन्तु ना मिला कोई हमसफ़र, जो संग करे दरिया पार
क्या कोई होगा उस पार? क्या कोई होगा उस पार?
भावनाओं के समंदर में गोते हम खाते हैं
सब से अच्छाई करके भी बुराई ही पाते हैं
मन ढूँढता है उसे, जो भुला दे दुखड़े हज़ार
क्या कोई होगा उस पार? क्या कोई होगा उस पार?
जीवन है क्षण भंगुर ऐसा कहा जाता है
इसमें हर कठिनाई को, अकेले ही सहा जाता है
किन्तु मन खोजता है फिर भी वो साया बार-बार
क्या कोई होगा उस पार? क्या कोई होगा उस पार?