चेतावनी Vivek Tariyal
चेतावनी
Vivek Tariyalरात की हो कालिमा या दिन का हो अँधेरा,
लोगों की कुंठित सोच ने हर क्षण तुझे है घेरा।
काल को निमंत्रण दे रहे ये अधर्मी, नीच, पापी,
तुझ संग ऐसा करते जिनकी रूह तक न काँपी।
कदाचित, यह जानते नहीं, कि तू परम शक्तिमान है,
असीम शक्ति का केंद्र है तू, सृजन का तुझे वरदान है।
जहाँ तुझमे कोमलता है, रूप और श्रृंगार है,
वहीं तुझमे धैर्य के संग, सृजन और संहार है।
अपने झूठे पौरुष पर कब तक यूँ इठलाएगा ?
घर जाकर अपनी जननी को कैसे मुँह दिखाएगा?
क्या बोलेगा उससे, कैसा नाम कमाकर आया है?
उसके दिए संस्कारों की बलि चढ़ा कर लाया है ?
अरे मूर्ख! मत दे चुनौती उसे, जो है धैर्य की प्रतिमा जीवंत,
उसके भीतर बसती है माँ चंडी जो कर देगी तेरा अंत।
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यह जानकार अत्यंत दुःख होता है कि आज भी समाज का एक बड़ा पुरुष वर्ग स्त्रियों के प्रति अपने मन में दुर्भावनाएँ रखता है। आए दिन स्त्रियों के साथ होते दुर्व्यवहार के समाचार मन को क्षुब्ध करते हैं। स्त्री साक्षात् शक्ति स्वरूप है किन्तु लोग उसके इस शक्ति स्वरुप से परिचित नहीं हैं। अगर स्त्री माँ की कोमलता अपने अंदर समाय हुए है तो इसके साथ ही माँ काली का रूप भी है। यह कविता ऐसे पुरुष वर्ग को चेतावनी देते हुए अपना आचरण बदलने हेतु प्रेरित करती है।