हो सुबह तुम्हारी आहट से  Deeksha Dwivedi

हो सुबह तुम्हारी आहट से

Deeksha Dwivedi

हो सुबह तुम्हारी आहट से, तुम्हे सोचते सोचते सो जाना 
ये मन भी कितना चंचल है, चाहे बस हरदम बहकना
आँखे दुःख में क्यों छलक उठे, ना होंठों पे हंसी की झलक दिखे
दोनों एक ही घर के कोने, फिर नामुमकिन क्यों मिल पाना
जब आँख खुली और देखा जग, तो मिला नया ही नजराना
पत्थर जो लड़े जग रोशन हो, पत्थर को हमने रब माना
एक नया नज़रिया उदित हुआ, आसान हुआ अब मुस्काना
मंज़िल अब ज्यादा दूर नहीं, हुआ सफल तुम्हारा समझाना 
बस नज़र चाहिए अर्जुन सी, अबकी तो ना चूके निशाना
मंज़िल तक थोड़ा मुझे चलना, थोड़ा मंज़िल को है आ जाना 

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