सौतन  Sachin Khandelwal

सौतन

Sachin Khandelwal

मदिरा को इतना प्यार दिया
तन, मन, धन सब वार दिया
मैं पति प्रेम को तरस गई,
सुत पिता प्रेम को तरस गए,
पर अधरों को मदिरा भाई
निज जीवन को धिक्कार किया
मेरे परमेश्वर, मैने मधु को,
अपनी सौतन स्वीकार किया |
 

मधुशाला रचने वाले ने भी तो,
कभी ना इसका पान किया
लक्ष्मी रूठी, इज़्ज़त छूटी
स्वज़नों ने हृदय से बाहर किया
इतिहास गवाह,  इस हाला ने,
कब किसका उद्धार किया
मेरे परमेश्वर, मैने मधु को,
अपनी सौतन स्वीकार किया |
 

मदता में ऐसे खोए, सर्वस्व समर्पण कर बैठे
स्वाभिमान की राख हुई और अपनों से ही लड़ बैठे
हे स्वामी, मैं हाथ जोड़कर कहती हूँ
कुछ तो अब निहाल करो
मेरा छोड़ो,  इन बच्चों का तो ख़याल करो
जी ना सकूँगी एक पल भी,
गर तुमने अब इनकार किया
मेरे परमेश्वर, मैने मधु को,
अपनी सौतन स्वीकार किया |

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