आधुनिक शिक्षा Sachin Khandelwal
आधुनिक शिक्षा
Sachin Khandelwalघूरती घड़ी-घड़ी, पोथियाँ धरी-धरी
धूल में सनी हुई, निःशब्द हो कह रहीं
अंक तो मैं दे गई, ज्ञान मैं ना दे सकी
पद भी मैं दे गई, स्वाभिमान ना दे सकी |
सीखा-सिखाया इस तरह की आत्मविश्वास खो गया
बोझ बन गई शारदा, हृदय तुम्हारा रो गया
सहिष्णुता घट गई, विनम्रता हट गई
अप्रत्यक्ष ही सही, ये मुझसे कैसा पाप हो गया |
कम नहीं जो पढ़ गए, अल्प हैं गुने गए
आत्मदाह कर रहे, अवसाद से जो भर गए
शंख अंतर्मन का क्यूँ, बजा नही अभी तक यूँ
सो गया समाज है, या बुद्धि-ज़ीवी सो गए…
सो गया समाज है, या बुद्धि-ज़ीवी सो गए…