मजदूर Devendra Raj Suthar
मजदूर
Devendra Raj Sutharजिनके हाथ फटे हैं
जो दिन रात
हालातों को बदलने में डटे हैं
माथे पे जिनके
पसीने की बूंदे हैं
जिनके हिस्से में
ना कोई संडे है ना कोई मंडे है
वे मजदूर हैं
जो मेहनत को मीत बनाकर जीते हैं
फटी किस्मत को खुद ही
अपने हाथों से सीते हैं
लड़ते हैं भिड़ते हैं
बहादुरी से जीवन को
सहर्ष स्वीकार करते हैं
वाकई ! जिंदगी मतलब मजदूर है
जहां रोज कुँअा खोदना है
और रोज प्यास बुझानी है।