आज की सीता  Shikha  Kumari Upadhyay

आज की सीता

Shikha  Kumari Upadhyay

ऐ राम अब मैं वो तेरी सीता नही,
जो मर्यादा के खातिर चुप रह जाऊँ,
तेरी सभा में जो आँख उठे सवाल बनकर ,
उन सवालो के जवाब बनकर दिखाऊँ।
 

ऐ राम अब मैं वो तेरी जानकी नही,
जो अँसुअन की धारा में बह जाऊँ,
हर पग पर ना दूँ अब मैं अग्निपरीक्षा,
ना अपने चरित्र का कोई प्रमाण दिखाऊँ।
 

ऐ राम मैंने अपनी चुप्पी से ना जाने
ये कैसी अपमानित पहचान बनाई,
खोट तो था उस रावण की नज़रो में,
फिर क्यों मेरे सतीत्व पर सबने उँगली उठाई।
 

ऐ राम तुम तब भी मौन खड़े थे,
आज भी ना कोई अधिकार दिला पाया,
इसीलिए नारी का दर्पण बदलने समय का पहिया
कल की सीता को आज की दुर्गा बनाकर लाया।
 

ऐ राम मुझे पूजकर भी मेरी बोली लगा दी जाती है,
गर्भ में मरने से दहेज़ तक की पीड़ा मुझे दी जाती है,
ना अब मैं अपने सम्मान के खातिर चुप रह पाउँगी,
अपना अधिकार माँगकर नहीं छीनकर दिखाउँगी।
 

जो कल तक मानव जगत के लिए आशीर्वाद थी,
आज वही उनके लिए अभिशाप बनकर आई हूँ,
सतयुग से कलयुग तक के रावण जैसे अत्याचारियों
का मैं एक-एक कर सारा हिसाब करने आई हूँ।

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