बस एक मौका रोशन "अनुनाद"
बस एक मौका
रोशन "अनुनाद"चंद बूँदे गिरी धरा पर,
समा गयीं,जज़्ब हो गयी,
अंदर किसी अंधरे कोने में,
सुप्त पड़ा कोई बीज,
अलसाया सा,
अंगड़ाई लेकर जाग उठा,
मस्तक ऊंचा किए,
धरती की कोख से,
निकल बाहर,
उठ खड़ा हो गया।
अनजान दुनिया,
पर जीने की ललक,
हर दिन नई चुनौती,
हवा-पानी,
बनकर तूफां, सैलाब,
लीलने को बेताब,
जीव-जंतु,
कुचलने, चबाने को आतुर,
किसी तरह बच निकल,
बड़ा होता जाता।
अब मज़बूत,तना हुआ,
खड़ा है अटल,
जीव जंतु को छाँव,
ठौर, देता,
सब गुणगान करते,
कभी कुचलने,
चट कर जाने को आतुर,
आज फल पाते,
स्नेह पाकर अभिभूत,
शर्मिंदा, कुछ-कुछ।
गर पनपने का एक मौका,
मिले फ़क़त,
काम आ सकता है
कोई भी किसी के,
हम सबके,
बस बात मौके की है,
बीज को जमने तो दो,
खाद पानी न सही,
कुचलो मत,
बस सांस ले लेने दो,
जी लेगा गर माद्दा है तो।