कुर्सी क्यों तू मौन है  Shikha  Kumari Upadhyay

कुर्सी क्यों तू मौन है

Shikha  Kumari Upadhyay

ऐ कुर्सी तू क्यों मौन खड़ी है ?
देख यह वसुंधरा लहू से रंगी पड़ी है।
दे कुर्बानी जो वतन के खातिर गए
वो सिपाही न अब लौट कर आएंगे।
मिटृटी का कर्ज़ क्या अब सिर्फ़ वही चुकाएंगे?
 

लोकतंत्र के भार का तू प्रतिनिधित्व है
संविधान के अधिकारों का तू ही तो प्रतिबिंब है।
फिर क्यों वो छवि धुंधला सी गई है
भारत का वो अमिट इतिहास क्यों तू बिसरा गई है ?
अभी भी तू क्यों आंखें मूंद कर सोई पड़ी है ?
 

उठ जाग देख उन बहते आंसुओं को
जिसने अपने पिता,पति,बेटे को खोया।
उन वीर जवानों का हर वो खून का कतरा
तेरी सियासत का क्यों बना है मोहरा?
देख तिरंगा भी वीरों से लिपटकर संताप में रोया।
 

गर अब सब देखकर भी तू चुप बैठ गई
भारत की मिट्टी का मोल जो तू भूल गई
फिर प्रजा से कैसे आंखें तू मिला पाएगी
उन वीर जवानों का कर्ज़ तू कैसे चुकाएगी।
भारत माँ पर उठने वाली नज़रों को कैसे तू झुकाएगी?
 

अब तो तू अपनी चुप्पी को तोड़
निंदा की बाहें छोड़ जय वीर जवान बोल
ले बदला उस छाती पर लगी हर गोली का 
दे जवाब आतंकियों के आतंक की बोली का।
हृदय की अग्निप्रज्वलन से दुर्जन का तू हौसला तोड़।

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