सोच रोशन "अनुनाद"
सोच
रोशन "अनुनाद"चेहरा,चेहरे के रंग,
रंग बदलती बेरंगी दुनिया।
हँसी के भाव,
अंतर्मन का
द्वन्द छिपाने की कोशिश,
चेहरा छुपाएँ कि द्वन्द या अंतर्मन,
मोनालिसा सी भावभंगिमा
बन जाती है इस जद्दोजहद में।
नाखुशी को ख़ुशी,
नफ़रत को प्यार
जताने की कला,
होने वाले नफ़ा नुक़सान
का आंकलन करूँ कैसे
तत्काल, समय भी नहीं।
भावभंगिमा का चातुर्य
कला फिल्मों का अभिनय,
उम्दा और त्रुटिहीन
एक्सप्रेशन महीन से महीन।
मौत के दरवाजे से लौटे
लोगों से बाईट
निकालने की कला,
बाइट देने का सामर्थ्य,
हर कदम पर अभिनय।
अपने कर्मों को
जन आवाज बना देना,
अपनी जवाबदेही को
जनभावना बना देना
लोगों का सैलाब,
राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रद्रोह।
मेरा राष्ट्र, मेरे जैसों का राष्ट्र,
बाकी राष्ट्र द्रोही,
मेरी सोच, मेरे जैसी सोच,
बाकी सोच राष्ट्र विरोधी।
राष्ट्र सर्वोपरि,
मनुष्य अस्तित्व विहीन,
राष्ट्र के लिए मनुष्य या
मनुष्य के लिए राष्ट्र।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता,
अपनी तरह से
सोचने का अधिकार,
दूसरे से भिन्न
सोचने का अधिकार,
क्या सोचूँ
यह सोचने का अधिकार
क्यों न सोचूँ अलग,
क्या मैं कारखाने से
निकला प्रोडक्ट हूँ?
अपना अपना दृष्टिकोण,
दृष्टिकोण की स्वतंत्रता,
क्यों चली जा रही रसातल में।
राजा की सोच ही सही सोच,
उस सोच का औचित्य,
लाभ, हानि
सोच नहीं सकता ,
राजद्रोह, गद्दार, दुश्मन
न जाने क्या क्या।
ऐसा क्यों,
ऐसा कैसे मान लूँ,
सोचना नहीं छोड़ सकता
अपने मौलिक विचार
जिससे जनतंत्र बना,
जनता का, जनता के लिए,
जनता द्वारा किया जाने वाला
शासन विकसित हुआ।
मनुष्य छोड़ नहीं सकता
सोचना, अलग सोचना
क्रमिक विकास,
व्यक्ति का पहले,
राष्ट्र का बाद में।
राष्ट्र मेरे विचारों,
सबके विचारों का
निचोड़ हो तो ठीक
न हो तो भी मेरा दिमाग
नियंत्रण मुक्त है,
उस ईश्वर की थाती
जिसकी मर्जी से
मैं इस धरती पर आया।