चरित्र  Shikha Kumari Upadhyay

चरित्र

Shikha Kumari Upadhyay

रुप रंग से क्या जानोगे मुझको
मैं तो बदल दिया जाता हूँ तब
देख कर समाज के आइने को
छिपा लेता हूँ उस चेहरे के पीछे
हकीकत चरित्र की पहचान को।
 

तुम जैसा चाहो ढल जाऊँगा मैं
जब चाहो तब मिटा दिया जाऊँगा
फिर भी सबकी आँखों से जाँचा जाउँगा
समाज की हर कसौटी पर परखा जाउँगा
तब भी समाज के नज़रिए को नहीं बदल पाउँगा।
 

संस्कारों के कटघरे में नज़रें
मुझ पर यूँ उठ जाएँगी
समानता के दौर में भी
अंतर वो कर जाएँगी
पर सत्यता के तराजू पर मुझे नहीं तौल पाएँगी।
 

सतयुग से कलयुग के इस दौर में
परिवर्तन लेकर आया हूँ।
कल तक जो रावण मे, मैं था
उसे आज राम में समा के लाया हूँ
कल की सीता को झाँसी की रानी बनाकर लाया हूँ।
 

मेरी सीमा की हर वो पैमाइश
तुम कभी नही कर पाओगे
जाँच परख कर भी तुम मेरे
किसी छल को नहीं समझ पाओगे
क्योंकि मैं कल का युग बनकर आया हूँ
मैं समाज का चरित्र बदलकर लाया हूँ।

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