छलावा  Arjit Pandey

छलावा

Arjit Pandey

काश थोड़ी देर और
तुम ठहर जाती
मैं समेट लेता अपने
टूटे हुए दिल के टुकड़े
बिखरे हुए जज़्बात
सपनों को
मेरा गुरूर कहीं
एक कोने में पड़ा
सुबक रहा है
बड़ा गुमान था न उसे
तुम्हारी चाहत का
प्रेम पराग से कुछ फूल
खिलाये थे तुमने
जिनकी महक से
मेरे दिल की बगिया
महकती थी
वो फूल मुरझाए क्यों
क्या प्रेम पराग में इतना
सामर्थ्य नही था तुम्हारे
या तुम वास्तविक न होकर
छलावा मात्र थीं।

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