बेईमानी का बाज़ार Faizal Ansari
बेईमानी का बाज़ार
Faizal Ansariसत्ता में बैठा हर आदर्शवादी मुझे अब बंदा महान दिखता है |
ये बेइमानी का बाज़ार है साहब, यहाँ लोगों का ईमान बिकता है ||
अब योजनाएँ बनेंगी खूब बाजारी की ,
और देश में चीज़े होंगी कुछ खुमारी की,
फिर पत्थर की आँखें देखेंगी
इज्ज़त लुटते हर बेचारी की |
अब देखते हैं इस नीव के पत्थर पर कौन टिकता है |
ये बेइमानी का बाज़ार है साहब, यहाँ लोगों का ईमान बिकता है||
सरहद पर मिटेंगे फिर कुछ जवान ,
और खुल जाएगी नेताओं की ज़ुबान ,
कुछ पुतले फूंकेंगे, कुछ बसें जलाएँगे,
और फिर लिख देंगे मेरा देश महान |
यहाँ नेता चक्की चलाता है, और बंदा-ए-आम पिसता है |
ये बेइमानी का बाज़ार है साहब, यहाँ लोगों का ईमान बिकता है ||
नेता की क्या गलती है सत्ता तो सत्ता है
सारी सुविधाएँ हैं ऊपर से भत्ता है |
वैसे तो उपद्रव को खुद बुरा बताते
मगर इनके लिए वो हुकुम का पत्ता है |
एक कवि का क्या मोल यहाँ पर वो तो बस विलाप ही लिखता है |
ये बेइमानी का बाज़ार है साहब, यहाँ लोगों का ईमान बिकता है ||
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चिंता अगर तब जागे जब चिता जल चुकी हो तो ये चिंता का विषय है | दो शेर जो महीने भर कानो में गूंजते रहे और उनकी गूंज से ये कविता बनी
इतनी नाफाकत से चाबुक चलाते हैं हुक्काम |
मज़ा आ रहा है कहती है आवाम ||
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में |
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में ||