साहसी जान VINAY KUMAR PRAJAPATI
साहसी जान
VINAY KUMAR PRAJAPATIमुझमें है एक साहसी जान,
हर लक्ष्य को जो करे आसान,
किसी भी डर से वह ना डरे,
किसी भी हार से वह ना हारे,
हिमालय से ऊँची उसकी चाहत,
समुद्र से गहरी उसकी बात,
है अनोखी उसकी शान,
मुझमे है एक साहसी जान।
सत्य की राह पर वह चले,
कभी ना मिले झूठ से गले,
पथ पर हो चाहे विघ्न बड़े,
हर मुश्किल से वह लड़े,
सच्चाई की है वह खान,
मुझमे है एक साहसी जान।
संस्कारों की करे वह कदर,
कभी ना फेरे जुर्म से नज़र,
धूप मे है वह निर्मल छाया,
इन्सानियत की है वह सुन्दर काया,
सत्य -धर्म है उसका गान,
मुझमे है एक साहसी जान।
सुबह कि पहली धूप है वह,
मन-मंदिर का रूप है वह,
प्रगति पथ पर बढ़ चला है,
सभी वेदों को पढ़ चला है,
अमर तत्व है उसका ज्ञान,
मुझमे है एक साहसी जान।
जीवन को उसने दिया सहारा,
हर मंजिल को दिया किनारा,
उसने मुझे जीना सिखाया,
सद्भावना का कर्म सिखाया,
मन मे शांति भाव जगाकर,
किस्मत को बदलना सिखाया,
दया प्रेम है उसका दान,
मुझमे है एक साहसी जान।