कब सुबह होगी  रोशन "अनुनाद"

कब सुबह होगी

रोशन "अनुनाद"

मेरी सुबह इतनी अँधेरी क्यों है?
सुबह होने में इतनी देर क्यों,
सुबह होने के इंतज़ार में,
मेरे अपने संसार में,
लाशों के इतने ढेर क्यों?
 

उनका चमकीला दिन,
बिना बादलों का सूरज,
चमक रहा, सेंक रहा
उनका पहले से गठीला जिस्म,
मेरा सूरज बादलों में छुपा,
घनघोर बादलों में,
लगता नहीं कि सुबह हो गयी।
 

मेरा अधमरा,कुपोषित,
जर्जर शरीर,
थोड़ी धूप मांग रहा,
थोड़ा सा उजाला,
उसकी एक आंच
गर मुझ पर पड़ जाए,
मेरी आँखे उनके जैसी
रंगीन सुनहरी दुनियां
देख लें।
 

दो कदम उनके जैसे
बिना लड़खड़ाये चल सकूँ
तो क्या मुझे मरना होगा?
कब तक ख़ुदकुशी करेगा
मेरा समाज,
मेरे भाई कब इस रात की 
सुबह होगी,
बिना बादलों वाली,
चमकीले सूरज वाली।

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