शांत मन shivam singh
शांत मन
shivam singhमन की शांति बहुत कुछ बयां करती है,
बिन बोले हज़ारों पर वार करती है,
इन हंसी के मुखौटों पर मत जाइए,
हँसने के बदले सौ गम निसार करती है।
शांति के दूत हो तो जरा झांक लो,
मन से मन की व्यथा को जरा जान लो,
जानते गम वही जो दिलों से हारते,
दिल से हारे हुए को ज़रा थाम लो।
दिल ये शीशे का है जो चटक जाता है,
गर संभाला नही तो बिखर जाता है,
नादानों के हाथों मे ना दो ये दिल,
बड़ा नाजुक सा है ये, पिघल जाता है।
आजकल का ज़माना बदल सा गया,
प्रेम क्रीड़ा का मैदान बन सा गया,
यहाँ दर्शक भी है,यहाँ नर्तक भी हैं,
जहाँ जिस से मिला वहाँ ठग सा गया।
मन एकाकी हुआ,अब ना कुछ कह सका,
रोना चाहा परंतु ये रो ना सका,
सिसकियों मे लपेटे हुए दर्द को,
सोना चाहा परंतु ये सो ना सका।
ज़िन्दगी का ये पहिया यूँ ही चलता है,
आँखों मे मोतियों की परत रखता है,
जब खुशी से दिवाली मनाता है जग,
तब ये होली के रंग में फफक पड़ता है।