शहीद की बेटी शुभम त्रिपाठी
शहीद की बेटी
शुभम त्रिपाठीपापा! तुम झूठे हो,
इस बार भी नहीं आए।
जन्मदिन था कल मेरा,
उपहार भी नहीं आए।
बहुत गुस्सा हूँ मैं तुमसे, जो टी० वी० पर तो आते हो;
ये बताओ मुझको तुम, मिलने क्यों नहीं आते हो?
ना जाने कल से ही क्यों? माँ इतना रोती है,
तस्वीर तुम्हारी सीने पर रख, ना खाती ना सोती है।
सब आते हैं घर पर, नाम तुम्हारा लेते हैं।
ना जाने क्यों वे मुझे, बहलाने को कुछ देते हैं।
नहीं जानती मैं उन सबको, वे फिर भी हैं आए।
पापा! तुम झूठे हो,
इस बार भी नहीं आए।
जन्मदिन था कल मेरा,
उपहार भी नहीं आए।
नहीं करूंगी बात मैं तुमसे, अब जब भी तुम घर आओगे।
पहले करो ये वादा तुम मुझसे, ढेरों उपहार ले आओगे।
वे सेना वाले अंकल, अभी ही घर पर आए हैं।
मैं दौड़ी बाहर यह सोचा, वो तुमको भी लाए हैं।
वो कहते तुम शहीद हुए हो, और माँ को कुछ देते हैं।
फिर मेरी आँखें पोछे, और मुझको वो भेंटे हैं।
तुम कितने गन्दे हो, उनके साथ भी नहीं आए।
पापा! तुम झूठे हो,
इस बार भी नहीं आए।
जन्मदिन था कल मेरा,
उपहार भी नहीं आए।
अब तो गुड़िया भी पूछे है, कब तक तुम आओगे?
कहा था तुमने उसकी ख़ातिर इक गुड्डा लाओगे।
नहीं सताऊँगी मैं तुमको, अब तो जल्दी आओ तुम।
फूट-फूट कर सब रो रहे, आओ और शान्त कराओ तुम।
नहीं करूंगी ज़िद मैं अब से, जब भी तुम आओगे।
मुझे पता तुम मेरी ख़ातिर जल्दी आ जाओगे।
पापा! तुम अच्छे हो,
इस बार तो आ जाओ।
जन्मदिन तो बीत गया,
उपहार नहीं, बस आ जाओ।
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प्रस्तुत कविता एक वीर सैनिक की पुत्री के मनोभावों को उजागर करती है, जो हर बार की भाँति अपने जन्मदिवस पर अपने पिता के आगमन की प्रतीक्षा कर रही होती है; किन्तु इस बार उसके जन्मदिवस से एक दिन पूर्व ही वह सैनिक राष्ट्र-रक्षा व्रत का पालन करते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाता है।