आह्वान शुभम त्रिपाठी
आह्वान
शुभम त्रिपाठीयदि दो आज्ञा हे आर्यनाथ!
तो कलम-कृपाण उठा लूँ मैं।
कर प्रहार रिपु सीने पर,
लहु-स्याह बहा दूँ मैं।
झर-झर पय अब रिसती हैं,
कितनी पथराई आँखों से।
जो देख रही अम्बर में माएँ,
अपने लालों को ताखों से।
इन आँखों से देखा है,
कितने वीरों की गरिमाएँ।
इन कानों से श्रवण किया,
कितनों की ही महिमाएँ।
बहुत शिथिलता हुई,
अब मेरी बारी आई है।
दुश्मन को धूल चटाने की,
सबने कसमें खाई हैं।
है अपना रुधिर भी गरमाया,
धमनियों में उबाल है।
देश का ऋण चुकाने को अब,
तत्पर हर लाल है।
नहीं चाहिए अब करगिल,
ना ही रक्त जवान का!
बस दो आज्ञा हे आर्यनाथ!
जो लूँ बदला हर प्राण का।
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यह कविता वीर रस से सिन्चित, नव-जवानों को 'आह्वान' के रूप में प्रस्तुत है। आह्वान क्रान्ति का द्योतक होता है। अतः यह युवाओं द्वारा क्रान्ति लाए जाने के लिए एक आह्वान है, ताकि वह अपने बल (शारीरिक, मानसिक या साहित्यिक) द्वारा देश की रक्षा करेंं तथा वैश्विक समाज में अपने भारत को जगत-शिरोमणि बनाएँँ।