कारगिल विजय दिवस शशांक दुबे
कारगिल विजय दिवस
शशांक दुबेकारगिल का युद्ध, फिर याद आया है।
जिस दिन वीरों ने, तिरंगा लहराया है।
साथ ही याद आई, वीरों की कुर्बानियाँ।
शहादत की कुछ, अनसुनी कहानियाँ।
खुशियाँ भी है, पर गम भी छाया है..
कारगिल का युद्ध, फिर याद आया है।।
रक्त की होली खेलकर,विजय पाते हैं।
टेबल वार्ता में, वह सब छोड़ आते हैं।।
सत्ताधीशों नें हमें, बहुत छकाया है
कारगिल का युद्ध, फिर याद आया है।।
अब जो आगाज़ करें, अन्त तक डटे रहें।
जहाँ तक कदम पड़ें, वहाँ तक वतन रहे।
तब सही मायनों में, विजय को पाया है
कारगिल का युद्ध, फिर याद आया है।।