समय विशेष है शशांक दुबे
समय विशेष है
शशांक दुबेसंस्कार अब, सारे भग्नावेष हैं।
सभ्यताएँ, हो चुकी अवशेष हैं।।
ह्रदय भी, कहाँ निर्मल है बचा।
छुपा रखा, इसमें भी क्लेश है।।
संचित ऊर्जा भी, क्षीण है हो रही।
विचलित है मन, मिथ्या आवेश है।।
करें सदुपयोग, हम इस जीवन का।
जब तलक, प्राण इसमें शेष है।।
निर्मल करें मन, न राग है न द्वेष है।
जी लें जी भर, यह समय विशेष है।।