प्रेम : एक एहसास Rahul Kumar Mishra
प्रेम : एक एहसास
Rahul Kumar Mishraनिष्छल मन रूपी में,
आविर्भावों का वंदन है।
प्रकृति के सुंदर भावों का,
मानव तन में स्पन्दन है।।
है प्रेम हृदय का संयोजन,
मन की पावन अभिव्यक्ति है।
मृत्यु के पथ पर अपराजित,
उस सावित्री की शक्ति है।।
है प्रेम धरा के कण-कण में,
राधा की श्याम प्रतीक्षा है।
अग्नि ज्वाला को विस्मित करती,
सीता की अग्नि परीक्षा है।।
दैहिक विलास की वांछा ने,
इस प्रेम का अर्थ बदल डाला।
जिसमे अथाह गहराई थी,
वो बन गई तृष्णा की हाला।।
निज स्वार्थ साधने कलयुग में,
सब स्वांग प्रेम का करते हैं।
तन चढ़ते मूल्य की शूली पर,
खिलवाड़ हृदय से करते हैं।।
अपने मलिन भावों से तू,
ना प्रेम का आँचल दूषित कर।
तू त्याग देह की उत्कंठा,
इस प्रेम अर्थ विभूषित कर।।
वो धरिणी तल में सोई राज्ञी,
छवि प्रेम प्रदर्शित करती है।
तब शर्वरी की वो चंद्रमरीचि,
रुख ताज़ अलंकृत करती है।।
है प्रेम सृष्टि में अमर सदा,
मन में उम्मीद की दस्तक है।
ऐ प्रेम तेरे शाश्वत पथ में,
सब देव मनुज नतमस्तक हैं।।
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प्रेम प्रकृति के कण-कण में व्याप्त है, प्रेम न केवल मानव जाति अपितु सम्पूर्ण सृष्टि को एक सूत्र में पिरोने का एक सुंदरतम माध्यम है। इसकी अप्रतिम सुंदरता, चंचलता एवं विविधता को शब्दों में परिभाषित करना आज भी उतना ही कठिन है जितना कि इसे सच्चे व पवित्र मन से निभाना। तो आइए चलते हैं अपने विचार रूपी कदमों से कुछ कदम इस अनंत पथ पर ❤