तीन मुक्तक Rahul Pareek Pareek
तीन मुक्तक
Rahul Pareek Pareekज़माने में सभी बदनाम करते हैं दीवाने को,
सुनाकर हर गली में आम करते हैं फ़साने को,
मुकद्दर कब भला आशिक का होता है सिकन्दर सा,
मगर हासिल वही करता मुहोब्बत के खजाने को।
तुम्हें मैं खो नहीं सकता मगर पाना भी मुश्किल है,
वफ़ा में रो नहीं सकता मगर गाना भी मुश्किल है,
न जाने कौन से हालात में ले आयी ये किस्मत,
तुम्हें पाना भी मुश्किल है, भुला पाना भी मुश्किल है।
कहे जो जान देने को तो अपनी जान देते हैं,
भरी आंधी में हम कश्ती को दरिया पार खेते हैं,
वफ़ा की राह में यारों हुए नाकाम हैं हर दम,
चलो इस बार फिर से आज़मा के देख लेते हैं।