यह शहीद के पिता के शब्द kumar pandit
यह शहीद के पिता के शब्द
kumar panditहोली के रंग, दीपों की उमंग, राखी का प्रेम पाश कैसे ले लूँ,
कद एक इंच छोटा हो तुम भर्ती नहीं करते, मैं एक फुट छोटी लाश कैसे ले ।
जिस बेटे को कंधे पर बैठा के लगता था के सारा जहाँ मेरी मुठी में है, अब कन्धों पर सुना आकाश कैसे ले लूँ,
कद एक इंच छोटा हो तुम भर्ती नहीं करते, मैं एक फुट छोटी लाश कैसे ले लूँ।
अबकी बार छुट्टी आएगा, तो ईख की फसल को पानी देगा अब उस बर्बाद फसल की प्यास कैसे ले लूँ,
कद एक इंच छोटा हो तुम भर्ती नहीं करते, मैं एक फुट छोटी लाश कैसे ले लूँ।
नेताजी जी आप भेजिए तो सही अपने बेटे को लाम पर, मैं आपके कड़े शब्दों की कड़ी निंदा का विश्वास कैसे ले लूँ,
कद एक इंच छोटा हो तुम भर्ती नहीं करते, मैं एक फुट छोटी लाश कैसे ले लूँ।
उस कटे शीश की आँखे अभी भी मुझे निहार रही हैं, मैं जिन्दा कैसे रह लूँ साँस कैसे ले लूँ,
कद एक इंच छोटा हो तुम भर्ती नहीं करते, मैं एक फुट छोटी लाश कैसे ले लूँ।