बोल चाल मेरी DEVESH SHUKLA
बोल चाल मेरी
DEVESH SHUKLAमेरी ग़ज़लें गुनगुनाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी ।
बे आँसू रो जाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी।
कुछ न कह कर भी बहुत कुछ कह जाती है वो,
बे वक़्त सोने जाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी।
सारा दिन भूखे रह जाती है वो,
अब न कहीं संवर कर जाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी।
इस गम को न अपना पाती है वो,
अब न नखरे दिखती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी।
हर सोमवार मंदिर जाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी ।
कौन जाने कब तक रूठ जाती है वो,
बंद है जिससे बोल चाल मेरी।
चाँद न दिखे इसलिए आमवस्या को ही बाहर आती है वो
बंद है जिससे बोल चाल मेरी ।