मेरी माँ DEVESH SHUKLA
मेरी माँ
DEVESH SHUKLAछोटा सा था मैं किसी भोज के जैसा,
पर मुझे हर कदम उठा कर रखने वाली, वो माँ थी।
गर्भ मे मैंने उसे लात मारी,
फिर भी वो मुस्करा गयी, वो माँ थी।
पिता, पिता तो तब बनते जब मैं गर्भ से बाहर आता,
पर उस समय भी मेरी, वो माँ थी।
चाहे वो किसी का घर हो या फिर हो ट्रेन,
मेरी हलकी सी भूक पर स्तनपान करवाने वाली, वो माँ थी।
किसी और की गोद मे अविश्वास के कारण रो देता था मैं,
पर अपनी गोदी मे चुप करवाने वाली, वो माँ थी।
जल न जाऊँ कहीं गरम खाने के टुकड़े से,
फूक-फूक कर उसे शीतल बनाने वाली, वो माँ थी।
रह नहीं पाउँगा एक पल भी बिना उसके, था मालूम उसे,
बार-बार नानी के घर घूमने वाली, वो माँ थी।
कहीं हो ना जाए मेरी नींद में बाधा किसी के शोर से,
उन्हें धीरे से चुप करवाने वाली, वो माँ थी।
स्कूल जाना मुझे होता था, पर सुबह मुझसे पहले उठ,
सभी तयारी करने वाली, वो माँ थी।
न नहाना न पहनना कुछ न आता था मुझे,
मुझे सब कुछ सिखाने वाली, वो माँ थी।
बची हो रोटी खाने मे सिर्फ एक,
खुद न खा मुझे खिलने वाली, वो माँ थी।
हर बार चॉकलेट में से सिर्फ एक टुकड़ा खा कर,
पूरा मेरी तरफ सरकाने वाली, वो माँ थी।
मेरे सोते वक़्त अगर गलती से लाइट चली जाए,
तो बिना रूके बैना चलाने वाली, वो माँ थी।
जरुरत ही क्या थी उसकी, लेकिन फिर भी उन डब्बो में,
मेरे लिए धीरे से पैसे जोड़ने वाली, वो माँ थी।
पापा को तो नंबर से प्यार था, लेकिन सभी बच्चों से पूछ,
सबसे बढ़िया ट्यूशन का पता लगाने वाली, वो माँ थी।
मेरे लिए व्रत रख, भूखे प्यासे सारा दिन,
मेरे ही खाने के नखरे सहने वाली, वो माँ थी।
मैं तो नासमझ था, सो जाता था बेफिक्र हो कर,
लेकिन मेरा स्कूल बैग टाइम पीरियड से लगने वाली, वो माँ थी।
गलती से जो आ जाएँ मेरे कम नंबर,
बोल-बोल और लिख-लिख के याद करवाने वाली, वो माँ थी।
धन्यवाद करता हूँ मैं अपनी नानी का,
जो दिया माँ का उपहार मुझे, वो मेरे माँ की माँ थी।