बुझते दीये  RATNA PANDEY

बुझते दीये

RATNA PANDEY

मिट्टी से सने हाथ, धूप से तपता शरीर,
सूर्योदय से सूर्यास्त तक मेहनत करते,
दिल में यह उम्मीद लिये, कि जल उठेंगे
दीपावली पर, हमारी मेहनत से बनाये हुए दीये।
 

दिल में बड़े अरमान होते हैं,
जब अपने परिश्रम में लिपटे दीये बनाकर,
उन्हें बेचने के लिए वह तत्पर होते हैं।
सपना देखते हैं अब हम भी दीपावली मनाएँगे,
घर में मिठाई लाकर खाएँगे और
हमारे आँगन में फुलझड़ियों के साथ हम भी मुस्कुराएँगे।
 

घंटों बैठकर इंतज़ार करते हैं,
कोई तो आएगा, जो हमें हमारी मेहनत
का फल दे जायेगा।
कोई तो हमारे पसीने और हमारे अरमानों की कद्र करेगा।
 

निकल जाते हैं उनकी दुकानों के आगे से लोग कुछ इस तरह,
जैसे कुछ देखा ही ना हो उस तरह।
शाम ढले निराशा ही हाथ लगती है,
अथक परिश्रम के बाद भी,
उनकी दीपावली अंधेरे में ही सिमटती है।
 

चमकीली, रंगबिरंगी, बिजली के उपकरणों से जगमगाती
दिवाली लोग मनाते हैं।
झोपड़ी में जलते हुए मिट्टी के दीये,
बड़ी-बड़ी अटारियों की रौशनी देखकर,
कुंठित से हो जाते हैं।
उन्हें याद है वह हाथ जिन्होंने उन्हें बनाया था ,
उनपर अपना पसीना बहाया था
और उम्मीदों का महल सजाया था।
 

उन हाथों के लिए वह दीये पश्चाताप करते हैं,
अपने आप को कोसते हैं कि
काश हम भी इतनी रौशनी दे पाते,
कि बड़ी-बड़ी अटारियों पर चमक पाते,
तो आज हम पर पसीना बहाने वालों का,
हम कुछ तो क़र्ज़ उतार पाते।
 

काश दीयों की ही तरह,
इंसान का दिल भी उन मेहनतकश हाथों के लिए तड़पता,
जो दिन रात मिट्टी में रहते हैं, मिट्टी में पलते हैं,
और बड़ी ही मशक्कत करके,
मिट्टी को चिराग के रूप में गढ़ते हैं।
उसमें अपनी कलाकारी का लेप लगाकर,
उसकी सुंदरता को और भी निखारते हैं।
और इतने कम मेहनताने में हमें दे जाते हैं I
विदेशी रौशनी की लत कुछ
ऐसी लगी है कि हर कोई उसमें बह गया।
बुझ गये दीपक सभी, बस तेल बाकी रह गया।
दिल में जो अरमान थे वह अरमान सारे जल गये।
मेहनतकश इंसानों के, पसीने व्यर्थ ही बह गये।
 

बुझ रहे हैं दीये, आओ मिलकर यह संकल्प कर लो,
और फिर से उन्हें प्रज्जवलित कर दो।
गरीबों की रोज़ी रोटी है यह,
उनका पेट भरने का थोड़ा सा जतन कर दो।
अपने तो अपने होते हैं, इसलिए अपने देश की दौलत
अपनों में ही बंटने दो।
बुझती हुई आशाओं में उम्मीदों की किरण भर दो।
मिट्टी और पसीने को गढ़कर,
दीये बनाने वाले कलाकारों के साथ,
एक नई शुरुआत कर दो I
 

अगले वर्ष जब हम दीपावली पर बात करें,
तो बुझते दीयों की नहीं बल्कि जलते दीयों की बात करें।
और विदेशी चमक दमक पर नहीं,
अपने देश के मेहनतकश कलाकारों पर नाज़ करें।
अपने देश के मेहनतकश कलाकारों पर नाज़ करें।

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