हमारा किसान RATNA PANDEY
हमारा किसान
RATNA PANDEYकुछ कर रहे हैं ऐश यहाँ बिना मेहनत के ही,
लाखों कमा रहे हैं महफ़िल जमा रहे हैं,
ज़िन्दगी का लुत्फ उठा रहे हैं।
लेकिन मिट्टी में सोना उगाने वाले,
अपने तन को धूप में झुलसाने वाले,
देश को रोटी खिलाने वाले,
इतनी मेहनत के बावजूद भी कर्जा चुका रहे हैं,
अपना ख़ून पसीना बहा रहे हैं।
मिल जाएगा उनका पसीना एक दिन मिट्टी में,
किंतु ख़ून उनका बाकी रहेगा,
उनके अंश के रूप में पलता रहेगा।
नहीं करेगा वह कभी हिम्मत फिर हल चलाने की,
काँप जाएगा उसका सीना उस हल को उठाने में।
नहीं भूलेगा वह दर्द जो कभी उसके पिता ने सहा था,
और वह पिता की बांहों के बिना ही पला था।
देखकर ऐसा भविष्य कौन फिर हल उठाएगा,
कौन अपना पसीना यूं ही बहाएगा।
धीरे-धीरे ये ही मौसम चल पड़ेगा,
किसान का बेटा फिर शहर की ओर निकल पड़ेगा।
ज़रा सोचो कल्पना करो अपने भविष्य की,
दो वक़्त की रोटी भी तब मुश्किल पड़ेगी,
जब ऐसी हवा चलेगी।
दे दो सारे हक़ उन्हें अधिकार उन्हें,
ताकि उनका ख़ून पसीना सिर्फ मिट्टी में ना मिले,
बल्कि हरियाली और खुशहाली बन के निकले।
तभी यह देश खुशहाल होगा,
जब हर किसान यहाँ बराबरी का हकदार होगा।
जब हर किसान यहाँ बराबरी का हकदार होगा।
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हमारे देश में किसानों की आत्महत्या एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। किसान हमारे अन्नदाता हैं और उनकी आत्महत्या पूरे राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। एक कृषिप्रधान देश में यदि ऐसी स्थिति हो तो प्रगति और विकास की सारी बातें, हमारी सारी उपलब्धियाँ अर्थहीन हैं। मैंने अपनी कविता के माध्यम से इसी समस्या और उसके परिणामों की तरफ समाज का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है।