कसीदे पढ़ते-पढ़ते...... शशांक दुबे
कसीदे पढ़ते-पढ़ते......
शशांक दुबेथक गया हूँ ए-जिंदगी, लड़ते-लड़ते,
झूटे फ़रेबी मक्कारों से, भिड़ते-भिड़ते।
संभल-संभल के संभला हूँ मैं,गिरते-गिरते,
पहुँच गया हूँ इस हाल में, बढ़ते-बढ़ते।
उतर गया कसौटी पर बस, चढ़ते-चढ़ते,
कट गई रातें जीवन अनुभव, पढ़ते-पढ़ते।
बढ़ गए लोग ख़ुशामदी से यूँ,मंज़िल तक,
झूटी तारीफों के पुल बस, गढ़ते-गढ़ते।
कसीदे पढ़ते-पढ़ते.....................