नज़रों की वारदातें Nishtha Singh
नज़रों की वारदातें
Nishtha Singhमैं धड़कन के साथ चलूँ,
और तुम स्वछंद हो पंछी से।
तुम मर्म हमारे जीवन के
तुम सार हमारे सच्ची के।
कोई आता मुझको बहकाने,
कोई तेरी याद दिलाता है,
तेरी याद का कतरा एक आँसू,
क्यों मेरी प्यास बुझाता है।
मैं रोती हूँ यूँ बिलख-बिलख
जैसे हो गुण कोई बच्ची के
तुम मर्म हमारे जीवन के
तुम सार हमारे सच्ची के।
मैं एक नाविक की धार सही,
उस तट तक पहुँचती तो हूँ,
पर तुम हो मेरे कीर्तिमान,
तुझे देख के भरमाती तो हूँ।
बह जाती पिघल-पिघल के मैं,
तुझे देख घाट की मिट्टी से,
तुम मर्म हमारे जीवन के
तुम सार हमारे सच्ची के।