गंगाजल  Pushpendra Singh Bhadauriya

गंगाजल

Pushpendra Singh Bhadauriya

सारी रात पिया हमारे
दिल लगा कर पीटे हमको,
फर्श पोंछने का मन होगा
चुटिया पकड़ घसीटे हम को।
 

गाला दबाया प्यार से इतने
अँखियाँ जैसे लटक गयी हों,
गाली इतनी मीठी बांचे,
शक्कर भी सुनकर झटक गयी हो।
 

पिस्तौल दिखा कर दरखास्त किए
हम और किसी को न बतलाएँ,
हम मन में फ़रियाद किए
ये प्यार वो फिर न दिखलाएँ।
 

वो तो अपनी सारी चाहत
सिर्फ हमीं पर बरसाते थे,
चाय से खाने तक की तारीफें
मुक्कों से कर जाते थे।
 

रोज रात को शयन कक्ष में
मदिरा पान नियम से करते थे,
फिर देवतुल्य अपनी शक्ति का
हम पर प्रदर्शन करते थे।
 

कसम से इतने वीर थे वो कि
हम तुम को क्या-क्या बतलाएँ,
बस मन में ये फ़रियाद किए
कि ये प्यार वो फिर न दिखलाएँ।
 

हम ही ससुरी पगली थी
जो प्यार से उनके ऊब गयी थी,
उनके कोमल झापड़ की
झंकारों में डूब गयी थी।
 

इक रोज मुझ दीवानी ने भी
अपना प्रेम उन पर लुटा दिया,
उनके प्यारे मुक्के के बदले
उनको भी झापड़ जमा दिया।
 

अब इतना सज्जन मानव
आखिर ये कैसे स्वीकार करे,
उसके निस्वार्थ प्यार के बदले
पत्नी भी उसको प्यार करे।
 

बस ठान लिया मन में
मुझको सर्वोच्च प्रेम सुख देगा,
मैं मृत्युलोक में भटक रही थी
मुझको परम मोक्ष वो देगा।
 

गंगाजल का लिया कनस्तर
फिर मुझ पर बौछार कराई,
गंगा तो इतनी पावन थी लेकिन
मुझे केरोसिन-सी खुशबू आयी।
 

फिर अंततः उस सज्जन मानव ने
शुद्ध अग्नि में मुझे तपाया,
मेरी अशुद्ध देह को जलाकर
सोने जैसा खरा बनाया।
 

मेरे स्वार्थ के लिए बेचारा
अब जेल में प्रेम लुटाएगा,
और मैं पगली इसमें खुश हूँ
ये प्यार वो फिर न दिखलाएगा ।

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