माँ भारती VIKAS UPAMANYU
माँ भारती
VIKAS UPAMANYUभोर हो गयी अब, रण में लड़ने जाऊँगा,
पीकर लहू शत्रु का, अपनी प्यास बुझाऊँगा।
बहुत देख चूका लहू अपनों का, अब चुप कैसे रह पाऊँगा,
कसम भारती कि है मुझको, अब कुछ ऐसा कर जाऊँगा।
शहादत अपने सेनानियों की, अब बेकार न जाने दे पाऊँगा,
काट दूँगा शीश शत्रु का, वीर पुरुष कहलाऊँगा।
मर भी गया तो क्या, अमर बलिदानी हो जाऊँगा,
जाऊँगा पर जाते-जाते, नाम हिंद का कर जाऊँगा।
देखेगी, सोचेगी जिसको दुनिया, रंग में ऐसे सबको रंग जाऊँगा,
दिल सबका अपना होगा, धड़कन अपनी दे जाऊँगा।
संतप्त चित्त को भी मैं, सूर्य की तरह दहला जाऊँगा,
हिंद के लिए अर्पण अपना, सब कुछ कर जाऊँगा,
एक दिन मै भी, माँ भारती के आँचल में सो जाऊँगा।