रोते नहीं हैं बच्चे Kiran Shivhar Dongardive
रोते नहीं हैं बच्चे
Kiran Shivhar Dongardiveगुड़िया की शादी में अब खेलते नहीं हैं बच्चे,
खिलौनोमे झुनझुना चुन हसते नहीं हैं बच्चे।
जाने कहाँ खो गयी मासूमियत इनकी आँखों की,
कि परियों की सुनकर कहानी सोते नहीं हैं बच्चे।
न तितली से लगाव न कलियों से पहचान इनकी,
किसी बाग-बगीचे में फूल बनकर खिलते नहीं हैं बच्चे।
कभी मिट्टी से मैले हुए न पाँव इनके नन्हे-नन्हे,
कभी टिम-टिम करते तारों को गिनते नहीं हैं बच्चे।
कैसी बेरुखी सी दिखती है अब इनके अंदर बाहर,
कि आजकल बारिश मे खुलकर भीगते नहीं हैं बच्चे।
कैसा अकाल आन बसा है आँसुओं का इनके दिल में,
दादा-दादी गुज़र भी जाएँ तो रोते नहीं हैं बच्चे।
कैसे अजीब माहौल के साये आकर बसे दिल में,
अपने होकर भी अपनों को अपनाते नहीं हैं बच्चे।