अंतिम विदाई RATNA PANDEY
अंतिम विदाई
RATNA PANDEYथक गया था मैं पलंग पर लेट गया,
लेटे लेटे मैं यूंही कहीं खो गया।
तभी दस्तक द्वार पर ज़ोर से बोली,
मैं उठा और जाकर संकली खोली।
चलो जल्दी चलो तुम्हें तुम्हारी माँ ने है बुलाया,
तुम रास्ता भटक न जाओ इसलिए मैं तुम्हें यहाँ लेने आया।
तुम कभी आए नहीं पर आज चलना है,
भटक गए हो रास्ता पर अब संभलना है।
मैं चप्पल पहनकर उनके साथ हो लिया,
कदम लड़खड़ा रहे थे, साँसे तेज़ चल रही थीं।
तभी हम वृद्धाश्रम पहुंच गए,
कहीं से सिसकियाँ आईं,
कहीं रुदन लम्बा था,
कहीं ग़ुस्से में दादा थे,
कहीं मासूमियत थी छाई,
कहीं इंतजार लंबा था,
कहीं खामोशी थी छाई,
कहीं बैसाखी थी धोखे की,
कहीं उम्मीद थी छाई।
मैं अंदर आ गया था,
तभी मुझे खामोश पड़ी मेरी माँ नज़र आई।
मुझको देखकर उसकी आँख डबडबाई और काँपती आवाज़ ये आई,
मेरा अंतिम समय आ गया है,
बेटा मैं घर आना चाहती हूँ।
जिस कमरे में तुम्हें खिलाया था,
उसी में जाना चाहती हूँ।
तुम डरो नहीं वृद्धाश्रम तो पास था,
अब मैं दूर जा रही हूँ।
लेकिन जाने से पहले अपने घर को निहारना चाहती हूँ।
नहीं चाहती मैं कोई तुम पर उंगली उठाए,
इसलिए अपनी अर्थी अपने घर से निकलवाना चाहती हूँ,
कंधे पर तुम्हारे जाना चाहती हूँ।
नहीं चाहती मैं तुम्हारी औलाद ये सीखे,
इसलिये अंतिम सांसे तुम्हारी बांहों में लेना चाहती हूँ।
क्या पता कल तुम्हारा कैसा आएगा,
इसलिए ये नेक काम तुमसे करवाना चाहती हूँ।
तभी अचानक बेटा कहकर आवाज़ ज़ोर से आई,
मैं उठा हड़बड़ाया, कांप रहा था मैं।
तभी मुझे मेरी माँ नज़र आई,
दूध का गिलास हाथ में लाई।
मेरे सर पर हाथ फिराई,
कोई बुरा सपना देख लिया क्या भाई।
मैं संभला और सोचा ये तो सपना था।
नहीं माँ तू साथ है मेरे ,तो दिन रात मेरे हैं,
तेरी गोद में सर रखता हूँ तो सुख साथ मेरे हैं।
धिक्कार है उनपर जो ये कदम उठाते हैं,
शर्म आती है उनपर जो ये कदम उठाते हैं।
माता पिता को प्यार दो सम्मान दो, उनकी बांहों में पले हो,
उनको अपनी बांहों में ही अंतिम विदाई दो,
उनको अपनी बांहों में ही अंतिम विदाई दो।
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आजकल की युवा पीढ़ी को अपनी व्यस्त ज़िंदगी की वजह से माता-पिता भार लगने लगे हैं, वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण है। हम अपने कर्त्तव्य को भूल रहे हैं। हमें दुःख होना चाहिए कि हमें ममता की छाँव में पाल पोस कर बड़े करने वाले हमारे माता-पिता के साथ हम ऐसा अमानवीय बर्ताव कर रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कल हमारे बच्चे भी हमें यहाँ ढकेल सकते हैं। मेरी कविता समाज को इस सम्बन्ध में जागृत करने का एक प्रयास है।