सुख में कहाँ हमें राम याद आते हैं शशांक दुबे
सुख में कहाँ हमें राम याद आते हैं
शशांक दुबेमुस्कुराता प्यारा बचपन
दिन प्यारे वह सुहाने
मस्ती के सारे, सब काम याद आते हैं।
स्कूल की वो पढाई
दोस्तों से हुई लड़ाई
वो परीक्षा वो परिणाम याद आते हैं।
वो अँधेरा मैं अकेला
डरता सहमा हुआ सा
भूतों के डर से हनुमान याद आते हैं।
तरुणाई की प्यारी यादें
प्रियतम से फरियादें
इश्क़ के वे सब अंजाम याद आते हैं।
हम तो है धर्मनिरपेक्ष
संविधान मानते हैं
अब क्यों हमें चारों धाम याद आते हैं।
आ गया चुनावी मौसम
गिरगिट से हो गए हम
अब हमें लो भगवान याद आते हैं।
ये तो है पुरानी आदत
दुःख में याद करने की
सुख में कहाँ हमें राम याद आते हैं।