मैं "कविता" हूँ  Rahul Kumar Mishra

मैं "कविता" हूँ

Rahul Kumar Mishra

मैं राग हूँ मन के भावों की,
निष्प्राण कलम की शक्ति हूँ।
अधीर हो उठे मन में कल्पित,
मैं प्रेम की चिर अभिव्यक्ति हूँ।।
 

मैं अंतर्मन में सागर जैसी,
सुर में सुरा की सरिता हूँ।।
मैं युगों युगों तक चलने वाली,
अश्रांत कलम की "कविता" हूँ।।
 

स्वप्निल नयनों का ख्वाब हूँ मैं,
यौवन की अलंकृत बाला हूँ।
किसी प्रेमातुर महबूब के मैं,
त्रिषित अधरों की हाला हूँ।।
 

सिलवट में सिसकते शायर के,
बीती यादों की वनिता हूँ।।
मैं युगों युगों तक चलने वाली,
अश्रांत कलम की "कविता" हूँ।।
 

मैं शेर हूँ मिर्ज़ा ग़ालिब का,
सीता के नयन का पानी हूँ।
मैं मातृभूमि को आहुति देती,
राणा की अमर कहानी हूँ।।
 

बेबस के पीर का चित्रण करती,
मैं प्रेमचंद की रचिता हूँ।।
मैं युगों युगों तक चलने वाली,
अश्रांत कलम की "कविता" हूँ।।
 

मैं भारत माँ का हूँ वंदन,
तुलसी, कबीर का गाँव हूँ मैं।
सरहद पर लड़ते वीरों के,
माँ के आँचल की छाँव हूँ मैं।।
 

मैं छन्दों में रामायण के,
गीता, कुरान सी पुनिता हूँ।
मैं युगों युगों तक चलने वाली,
अश्रांत कलम की "कविता" हूँ ।।
 

मैं युगों युगों तक चलने वाली,
अश्रांत कलम की कविता हूँ ।।

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