नन्हें होंठ VRINDA SINGHAL SINGHAL
नन्हें होंठ
VRINDA SINGHAL SINGHALनन्हे होंठ नादानियों की उम्र में बाबा से पूछते हैं
बाबा वक़्त है तो चलो कुछ सवालों के भंवर से झूझते हैं।
कहो बिटिया बाबा ने कहा,
बिटिया कहती,
मुझे क्यों पैदा किया।
ज़मीन सर्की, कदम डगमगाए
पहले ही सवाल सुन
बाबा बैठे नज़रे झुकाए।
वो कहती
बाबा वो आदमी जो आपको अपना दोस्त बताता है,
और घर आकर लड़कियाँ होने पर दुख जताता है,
क्या वो अपने घर में अपने बाबा को माँ बुलाता है?
क्या राखी वो अपने भाई से बँधवाता है?
और माथे पर तिलक अपने दोस्तों से करवाता है?
क्या उसने अपना बचपन सिर्फ़ बाबा के आँचल में जिया है?
क्या उसने दूध अपने बाबा की छाती से पिया है?
बाबा मैं छोटी हूँ
पर मुझे सब समझ आता है,
क्या छुपाऊँ अब आपसे,
मुझे अकेला देख वो आदमी चॉकलेट क्यों देता है,
मेरी छाती पर चूटी भर
मुझे अपना प्यारा बेटा क्यों कहता है?
फिर किसी को भी आता देख
मुझे कहता है
जाओ अंदर काम करो
लड़कियों को यूँ टहलना शोभा नहीं देता है।
उसके चेहरे पर आदमी होने का घमंड झलकता है,
बाबा क्या वो सीधा आसमान से धरती पर आ टपका है।
बाबा लड़कियों को बुरी नज़र से देखने वाला ये शक्स जब भी हमारे यहाँ आता है,
मेरे अंदर जलते हुए इस नफ़रत के आंदोलन को और भी बढ़ा जाता है।
बाबा मैं माँ के अंदर जलते हुए ज्वालामुखी की वो आग हूँ
जिसे अब कोई जलने से रोक ना पाएगा,
जो बीच में आएगा वो जल कर राख हो जाएगा।
ये लोग शायद भूल गए हैं
जिस धरती पर ये कदम रख खड़े हैं
हम उसे भी माँ ही कहे हैं,
और बाबा
मेरी आखरी बात गौर से सुनना,
ये लड़ाई जिसका मैंने आज ऐलान किया है
इसकी शुरुआत
होगी आपके साथ,
ये बात रखना याद
अब मैं, मैं नही हम हैं
हाथ लगा कर कोई देखे,
हम भी बताएँगे हममें कितना दम है।
इसलिए अब सिर्फ़
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नहीं
आंदोलन उठाओ, राक्षस मिटाओ।
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ये कविता उन बच्चियों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है जो रोज़मर्रा के जीवन में यौन शोषण जैसी हैवनगी का शिकार होती हैं .... कोशिश है कि आप तक उनके विचारो को पहुँचाऊँ .... कि हम जिन्हें बच्ची समझ कर उनका पल-पल बलात्कार करते हैं ..... वो बच्चियाँ सब समझती हैं और किस दौर से गुज़रती हैं।