आकाश की नीली सच्चाई !!  Utkarsh Pandey

आकाश की नीली सच्चाई !!

Utkarsh Pandey

आकाश की नीली सच्चाई से
क्या तुम अब भी अनजान हो,
क्या अब भी अपरिचित हो तुम
क्षितिज की क्षुधा से ?
 

इस स्याह बिखरे तम में
तुम्हें सन्नाटों की सिसकियाँ नहीं सुनाई देतीं ?
 

क्या तुम्हें नहीं सुनाई देता
झींगुरों का विरह गीत,
क्या तुम्हें नहीं सुनाई देता
मेंढकों के फेफड़ों से फूट रहा
वासना का शोर,
क्या तुम्हें नहीं सुनाई देता
हवा के साहचर्य में
ऊँघते पत्तों की सरसराहट,
हाँ शायद नहीं, कुछ भी नहीं !
 

क्योंकि टिका रखी हैं तुमने
अपनी आँखें,
चाँद की लालसा में, रोशनी के लोर
टपका रहे तारों पर !
जिनकी चकाचौंध में
घुल गया है तुम्हारे अंदर का मर्म,
निराकार हो गए हैं सारे भाव
और संवेदनाएँ तैर रही हैं,
संभावनाओं के तारामंडल में।

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