नारी साहस Arun Mishra
नारी साहस
Arun Mishraइस तरह आँचल को पकड़
तू अलग क्यों हो रही है,
इस सघन बादलों मे पथिनी
चाँद भाँति खो रही है।
अपने साहस के प्रबल
शौर्य परिचय को भूल रही,
तेरे एहसासों मे देवी
टूटी माला झूल रही,
पहचान खुद को दुर्गा बन
दृढ़ खड़ी हो तू दुर्ग बन
वर्षा हो अँगारो की
जब दिखे अतुलित किरण,
जान खुद के शौर्य को
बाण हो अद्भुत प्रक्रम
त्राहि-त्राहि मच उठे
तू रमा से जब राम बन,
ऩाश कर दुष्कर्मी का,
बुद्धि, साहस, विवेक से
आदि भी अन्त बने,
जब सीता माँ काली बने।