तुम कब अय्यो मेरे लाल? Pushpendra Singh Bhadauriya
तुम कब अय्यो मेरे लाल?
Pushpendra Singh Bhadauriyaचिट्टी में लिख भिजवा रही
लल्ला अपनों हाल
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम्हरे बिन आँगन सूनो है
सूनो पड़ो मकान,
बाबा को लकवा है मारो
दिन-दो-दिन के मेहमान।
चिट्ठी आई है बहिना की
मैया आफत में है प्रान,
माँगे रोज रुपैय्या, मोटर-कार
माँगे बहिना की ससुराल।
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
जब से तुम परदेश बिराजे
कोऊ खबर नहीं लेत,
रोटी के लाले पड़े
बनिया उधारऊ नहीं देत।
साहू के गाहने धरो
बीघा भर को खेत,
शायद कुर्की भी हो जाएगी,
लल्ला अब के साल।
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
ओर-छोर से छप्पर टपके
टपके सबरी छात,
सकुरे बकरे लेटे बैठे
कट गयी सारी रात।
अबकी झेलना पावेगो
जे भादों की बरसात,
पुरखन की जई एक निशानी
मुश्किल है कटनो साल।
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम्हरो रास्ता देखत देखत
थक गयी अँखियाँ, पक गए सारे बाल,
थाली में परसे रक्खे हूँ
कब से अरहर वाली दाल।
चिट्ठियाँ लिख भेजत भेजत
पूरे हो गए बारह साल,
बूढी अम्मा, गाय, भैंसिया
पूछे फिर फिर वही सवाल।
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
तुम कब अय्यो मेरे लाल ?
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यह कविता दरअसल देश की एक बहुत बड़ी कंपनी में कार्यरत एक इंजीनियर बेटे से उसकी माँ द्वारा खत लिखकर पूछा गया सवाल है कि तुम कब अय्यो मेरे लाल। इस कविता या कहूँ तो कहानी में आधुनिक दौर में माँ-बाप-बच्चों के बदलते रिश्तों की मार्मिकता को व्यक्त करने की कोशिश की गई है। किस तरह एक माँ अपनी खेती जमीन गिरवी रख कर इंजीनियर बनाती है, और नौकरी लगने के पश्चात किस तरह वही बेटा अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लेता है और कई सालों तक लौटकर घर नहीं आता। वहीं उसकी अनपढ़ माँ उसको डाकिये से खत लिखवा कर अपने हालातों से अवगत कराती है, और पूछती है कि "तुम कब अय्यो मेरे लाल?"