माँ का प्रेम  Deeksha Dwivedi

माँ का प्रेम

Deeksha Dwivedi

मेरे अस्तित्व की रचना, ये उनका प्रेम ही तो है,
पिलाना दूध ममता से,
सुनाना लोरी प्यारी सी,
पीर सहकर मुझे जनना, ये उनका प्रेम ही तो है।
 

मैं रो दूँ रात में सोते, तो उनकी नींद उड़ जाए,
कभी झुनझुना बजाए वो कभी ताली से भटकाए।
सुलाकर गोदी में मुझको,
वो उनका रात भर जगना, ये उनका प्रेम ही तो है।
 

पकड़ ऊँगली कभी मुझे चलना सिखाए,
दिखूँ उदास तो मेरा खिलौना बन जाए।
कभी मेरा साथ देने को,
मेरे संग घुटनों बल चलना, ये उनका प्रेम ही तो है।
 

कभी गलती करूँ जो मैं, छुपा लेना मुझको सबसे,
कभी जो ठोकर खाऊँ तो, पकड़ लेना मुझे झट से।
रहूँ मैं मुश्किल में कितनी,
बिना डर संग-संग चलना, ये उनका प्रेम ही तो है।
 

ये मेरा आज मेरा कल, मेरी पहचान उनसे है,
मुकुट मस्तक का मेरे वो, हाँ मेरी शान उनसे है।
हो रिश्ता कोई भी जग में,
नहीं माँ सा कोई अपना, ये उनका प्रेम ही तो है।
मेरे अस्तित्व की रचना ये उनका प्रेम ही तो है।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
2040
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com