हृदय Utkarsh Pandey
हृदय
Utkarsh Pandeyनीलामियाँ होंगी अब
दो रूहों की,
साँस-साँस बिकेगी,
धड़कनों की कीमत तय की जाएगी
और बंद दरवाज़ों के पीछे
जो लाशें लिपटी पड़ी हैं
एक दुसरे से
वासना की कोख में,
अर्धनग्न, संवेदनात्मक सम्भोग में
नग्न की जाएँगी।
आरोप-प्रत्यारोप के
दौर चलेंगे,
प्रेम का बलात्कार होगा,
जिव्हा कुचली जाएगी,
यातनाओं का रूचार होगा।
खंजरों से जिस्म
काटे जायेंगे,
पृथक चीथड़ों की
नुमाइश होगी।
पर
इन सबके बीच
एक मात्र ह्रदय होगा
अकेला इस बाजार में
जिसका कोई खरीदार न होगा।
ये यूँ के,
हृदय धड़कता तो है
पर बिकता नहीं।