बदलते रिश्ते RATNA PANDEY
बदलते रिश्ते
RATNA PANDEYप्यार के यह रंग बड़े ही गहरे होते हैं,
लग जाएँ एक बार जो दामन पर,
जाते नहीं यह बड़े ही ज़िद्दी होते हैं।
लाख मिटाना चाहो इन्हें, मिटते नहीं,
यह दाग अपना छोड़ जाते हैं।
दिखाकर सपने नए यह रंग भरते हैं,
खुले जब आँख तो यह भदरंग लगते हैं।
चले गए हो मुझे छोड़कर तन्हा तुम ना जाने कहाँ,
दिल चाहता है कि काश तुम्हें मैं ढूँढ पाऊँ,
बनकर पंछी आकाश में उड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँ।
नहीं आता कभी कोई कागा मेरे आंगन,
कि कुछ उम्मीद रख पाऊँ,
पड़ी हूँ मैं अकेली किसे मैं अपनी लोरी सुनाऊँ।
चली थी जब तुम्हारे संग,
सब रंगीन लगता था,
जब तक साथ में थे तुम,
सब हसीन लगता था।
दे गए थे जो उपहार तुम,
मैंने बड़े ही प्यार से पाला है।
लुटा दिया है तन मन धन सब उनपर,
वह तुम्हारी निशानी हैं,
मैंने बस इतना ही जाना है।
नहीं करता कोई भी परवाह अब मेरी,
जीने की ख़त्म हो गई है जो चाह थी मेरी।
कानों में मेरे अब कोई आवाज़ नहीं आती,
जिव्हा किसी से कुछ कह नहीं पाती।
हूँ अकेली यहाँ मैं डर लग रहा है,
मौत से नहीं डरती तुम्हारे पास आना चाहती हूँ।
चार कंधे भी नसीब में नहीं होंगे मेरे,
यह बात तुम्हें बताना चाहती हूँ।
कैसे बतलाऊँ तुम सुन ना पाओगे जो हाल है मेरा,
गर तुम साथ होते तो हाथ मेरा थाम लेते,
बनकर मेरा सहारा गम बाँट लेते।
चार दीवारों के अंदर दम घुट रहा है मेरा,
कोई नहीं है पास मुझे डर लग रहा है।
मौत तो आनी ही है वह तो आएगी,
रूह निकलकर तुम्हारे पास आ जाएगी।
नहीं चाहती जिस्म मेरा चींटियों का आहार बन जाए,
नहीं चाहती कि फिर वह कंकाल बन जाए,
पेपर में चित्र बनकर छप जाए,
और इस रिश्ते व आपकी निशानी को
दुनिया में बदनाम कर जाए।
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आज हमें कितनी बार ऐसी घटनाओं के बारे में सुनने को मिलता है कि बच्चों द्वारा बुजुर्ग माता पिता को घर से बाहर निकाल दिया गया। कितनी ही घटनाएँ ऐसी होती हैं जिसमें घर से मृत्यु के कई दिन बाद बुजुर्ग माता की कंकाल बनी लाश निकाली गई। मेरी इस कविता में एक ऐसी पत्नी की व्यथा को दर्शाया गया है जो अपने पति की मृत्यु के पश्चात्अ केलेपन में महसूस करती है। आज समाज में इस बात की आवश्यकता है कि बच्चे बुजुर्ग माता पिता से दूरियाँ ना बनाएँ और उन्हें अकेलेपन का एहसास ना होने दें।