फिर एक बेटे का भाल गया शशांक दुबे
फिर एक बेटे का भाल गया
शशांक दुबेचौड़ी छाती वालों का,
यूँ एक राजनैतिक साल गया,
मातृभूमि की सेवा में,
फिर एक बेटे का भाल गया।
वह कोई नहीं तुम्हारा था
बस माँ की आँखों का तारा था,
पर अपने छोटे बच्चों का
वह केवल एक सहारा था।
यूँ कई बार लड़ते-लड़ते
वह मृत्यु को टाल गया,
मातृभूमि की सेवा में
फिर एक बेटे का भाल गया।
हुई बहुत अब बुद्धनीति
कुछ समर करो संग्राम करो,
दस शीश नहीं जो ला सकते
फिर मुँह का न व्यायाम करो।
भारत माता के चरणों में
मुण्डों का फिर जयमाल गया,
मातृभूमि की सेवा में
फिर एक बेटे का भाल गया।।
चौड़ी छाती वालों का
यूँ एक राजनैतिक साल गया...