हँसना  SATISH KUMAR AGARWAL

हँसना

SATISH KUMAR AGARWAL

बहुत मुश्किल है हँसना और हँसते रहना,
उससे भी मुश्किल है, अपने आप पर हँस पाना,
और सबसे मुश्किल है,
अपनी ही मुसीबतों पे हँस पाना।


जो अपनी मुसीबतों पे मुस्करा पाएगा,
वो ज़िन्दगी में कभी नहीं पछताएगा।
ऐसी घड़ियों में हँस पाना ही आपको अपनी मंजिल तक
सही सलामत पहुँचाएगा।


कुछ लोग सोचते हैं कि हँसना ठीक बात नहीं है,
खासकर जब हँसी उन्मुक्त हो, ठहाके वाली हो,
वो ज़रा सहम से जाते हैं,
सोचते हैं कि कोई उन्हें, पागल तो नहीं समझेगा।
पर मौके जब भी आते हैं,
वो कब अपने आप को रोक पातें हैं,
खिलखिला के हँसते हैं, नई ताज़गी को महसूस करते हैं,
पर फिर भी, दुर्भाग्य देखिए, वो ठहाकों को सही नहीं मानते हैं।


यह सिर्फ उनके उपरी मन का डर है,
जो शायद सदियों से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, उन्हें विरासत में मिला है,
पर ऐसे डर, जो सही नहीं हैं,
समय के साथ, अपना असर खो देते हैं।


जब भी थोड़ी धुलाई-सफाई होती है,
डर पीछे रह जातें हैं,
और हँसी और ठहाकों से,
माहोल में फिर से जान आ जाती है।


पर सावधान, कभी भूलकर भी,
कभी दूसरों पर मत हँसना,
और कभी हँसी निकल ही जाए,
तो हँसने के बाद, उससे माफी ज़रुर माँग लेना।


इससे एक ऐसा दोस्त तुम्हें ज़रुर मिलेगा,
जिसकी तलाश, तुम्हें बहुत पहले से थी,
खूब आगे बढ़ो और हँसने की दुनिया में कामयाब रहो,
इन्हीं इच्छाओं और दुआओं के साथ, विदा लेता हूँ।

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