साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं Shivam Kumar
साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं
Shivam Kumarसाथ अपने बैठ जाता हूँ मैं,
जब कभी टूट जाता हूँ मैं,
साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं,
जब कभी छूट जाते हैं अपने पीछे,
तो कुछ देर ठहर जाता हूँ मैं,
साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं।
जब कभी कुछ हार जाता हूँ मैं,
तो कुछ देर ठहर जाता हूँ मैं,
सब गलतियों को जान जाता हूँ मैं,
जब साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं।
जब कभी राह भटक जाता हूँ मैं,
तो कुछ देर ठहर जाता हूँ मैं,
राह नई बनाता हूँ मैं,
जब साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं।
हर लक्ष्य को पा जाता हूँ मैं,
जब साथ अपने बैठ जाता हूँ मैं।
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इस कविता के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि जब कोई व्यक्ति जीवन में हारता है, कोई अपना उसको छोड़ देता है या वह राह भटक जाता है तो केवल वही अकेला अपने काम आता है।जब वह कुछ समय अपने साथ बिताता है तो उसको हर समस्या का हल मिल जाता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।