माँ तू Veena Bhatt
माँ तू
Veena Bhattहर रोज़ रात को सोने के बाद,
हर दिन मेरे लिए नई तड़प लिए होता है,
उस वक़्त कोई पास नहीं मेरे होता है,
सिर्फ यादें तेरी होती हैं माँ।
महसूस होता है तू पास है मेरे,
चौंक कर दरवाजे पर कई बार देखती हूँ,
हर आहट तेरी सी लगती है,
पर वो तू नहीं सिर्फ तेरी यादें हैं,
आवाजें हैं तेरी जो अन्तर्मन मैं मेरे समाई हैं।
रोज सबेरे झूठ बोल-बोल,
अपने स्पर्श से जगाती थी,
पर माँ आज कोई नहीं जगाता,
खुद ही जग जाती हूँ,
नई माँ की डरावनी आवाजें और धमकियाँ,
सोने नहीं देती रातों को।
डाँट के कभी खिलाती थी,
मान मनौवल से दूध पिलाती थी,
अब तो मैं खुद ही खा लेती हूँ,
पिछली बार दूध कब पिया था याद नहीं,
अब फिक्र कहाँ कोई करता है,
बस हंस के जमाना मिलता है।
बचपन मेरा तेरे साथ चला गया,
तेरे बिन खामोश दीवारे हैं,
घर में एक अधूरापन सा है,
माँ नई आ गई है पर यादें तेरी ही बिखरी हैं।
पापा ने अलमारी में सारी चीजें तेरी बंद कर दी हैं,
खोलती हूँ अलमारी जब भी तेरी तो
खुशबू आती है रसोई के मसालों की,
जिसमें तू स्वादिष्ट राजमा चावल बनाती थी,
अब तो वैसा खाना बनता ही नहीं,
कई दिनों से मैगी खाते-खाते थक सी गई हूँ।
पूजा की थाली तेरी मन्दिर में औंधी पड़ी है,
कभी-कभी दिया जरूर जलता है,
मन्दिर की घंटी अब बजती नहीं,
माँ अहमियत आज तेरी समझ आई है,
जब अस्तित्व मेरा विचलित है बिन तेरे।
माँ को पाना पुण्यों का ही प्रताप है,
बिन तेरे संसार वीरान सा है,
ख्वाहिश नहीं अब कुछ पाने की,
बस हर जन्म तू ही मेरी माँ हो,
वादा कर ले मुझसे इतनी जल्दी जाना न तू।
याद आती है वो बात सब कहते हैं,
माँ के अंगुली छोड़ कर जाने से
पापा भी पराये हो गए,
माँ तू अहसास थी,
मेरी आवाज थी,
मेरा अस्तिव थी,
आज मैं हूँ की नहीं
किसी को पता नहीं।