माँ मनीषा अस्मि
माँ
मनीषा अस्मिमाँ क्यों मैं जाऊँ पाठशाला?
बोलना, चलना, खेलना, हँसना जब तू ही सिखलाती,
रात को तेरी कहानियाँ मुझे कैसा है ये जग सिखलाती।
जो भी होती ग़लतियाँ तू प्यार से सही करवाती,
ऐसे बोलो, ऐसे करो, ऐसे रहो, ऐसे बनो,
जब तू ही माँ मुझे सब बतलाती तो क्यूँ अब पाठशाला ले जाती?
अब तू ही बता माँ मैं क्यों पाठशाला जाऊँ?